उसने मुझसे पूछा- तुम्हारा नाम क्या है?
मैं, मैं कुछ कह न सकी।
सब तो याद था—
मेरे घर का पता; माँ का नाम;
बाप का काम; पति का जन्मदिन;
दोस्त का फोन नंबर—
सब तो याद था।
बस अपना नाम मैं कहीं रख कर भूल गई थी।
सब तो याद था पर नहीं याद था तो वह स्थान
जहाँ मैं अपना नाम छोड़ आई थी।
और फिर किसी ने इतने दिन में
जानना भी तो नहीं चाह था, मेरा नाम।
बस उनकी रुचि थी तो जानने में मेरा पेशा।
करती क्या हो? काम क्या करती हो?
तुमको मैं कैसे पुकारूँ? क्या कह कर पुकारूँ?
तुम्हारा नाम क्या है?
ये तो कितने ही अरसे बाद आज किसी ने पूछ लिया था।
और पूछा तो मैं बता न सकी
मेरा नाम… मेरा नाम तो आ…
नहीं का... नहीं नहीं र...
मेरा नाम क्या है?
मैं पूछने वाले से ही पूछ बैठी।
वो एक कदम पीछे हटा,
उसने मेरा हाथ थपथपाया
होंठ सिकोड़ के अपने सर को
दाएं से बाएं और बाएं से दाएं
कहीं तीन बार हिलाया और चल दिया।
मेरा नाम तो बताते जाओ, मैंने उससे कहना चाह।
पर कुछ कहे बिना मैं भी अपने रास्ते आगे बढ़ गई।
अब ज़ुबान और मन में बस एक ही बात थी—
मेरा नाम क्या है। क्या है मेरा नाम।
मेरा नाम क्या है। क्या है मेरा नाम।
मेरा नाम क्या है। क्या है मेरा नाम।
क्या है मेरा नाम।
क्या है
मेरा नाम।
तभी चारों और से आवाज़ें आने लगी,
कोमल। तृष्णा। साक्षी। लक्ष्मी।
मधुरा। फिज़ा। सावित्री। गायत्री।
मोहिनी। तेजस्विनी। सपना।अर्चना।
रौशनी। साधना। आराधना।
आशा। परिभाषा। ऐश्वर्या। धैर्या।
मैं घबरा गई। मैं बौखला गई।
क्या यह सब मेरे नाम हैं?
पहले एक एक कर के,
फिर एक साथ ये नाम
बर्फ के कठोर ओलों की तरह मेरे,
और केवल मेरे ऊपर बरसने लगे
मैं उनकी मार से गिर कर बिखर गई।
एक नाम ही तो पूछा था,
क्यों तुमने पूरे संसार का भार मुझ पर फेंक डाला?
मैंने किसी से तो पूछा।
बस तभी अचानक से याद आया
मेरा नाम, मेरा नाम तो
कल्पना है।
बेहद उम्दा लिखा है 🌸
शब्दों की खूबसूरत माला!